tag:blogger.com,1999:blog-45042164753683177672024-03-13T06:35:05.733-07:00सच्चा या झूठाइस ब्लोग के माध्यम से मैने अपने विचारो को प्रकट करने का प्रयास किया है ! अब यह आपको निश्चय करना है कि यह रियल है या नारियल .मै आप सभी के विचारो का सम्मान करता हूँ !Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-4504216475368317767.post-82552712569462634032020-04-05T11:26:00.001-07:002020-04-05T11:26:34.143-07:00एक नई सोच की जरूरतआज के इस समय में जहां पर कोरोना एक महामारी के रूप में फैला हुआ है एवं संपूर्ण विश्व में इसके रोकथाम के लिए उपाय किए जा रहे हैं जहां पर कई देशों में लॉक डाउन कर्फ्यू जैसे हालात है अपितु हमारे देश भारत के अंदर भी संपूर्ण लॉक डाउन है जिसे कि लोगों की जिंदगियों को बचाया जा सके एवं कोरोना नामक बीमारी को रोकथाम किया जा सके जिससे कि भविष्य में विकट स्थिति उत्पन्न ना हो !<div>लेकिन कहते हैं ना <b>कुछ बुरा होता है तो कुछ अच्छा भी होता है </b>शायद कुछ ऐसा ही है जो हमारे साथ में अभी घटित हो रहा है जिसे हम देख कर भी अनदेखा कर रहे हैं !<b>संपूर्ण विश्व जहां पर पर्यावरण को लेकर चिंतित है !वायु प्रदूषण ,जल प्रदूषण ,ध्वनि प्रदूषण इत्यादि अनेक समस्याओं से संपूर्ण विश्व जूझ रहा है !हमारे देश के अंदर भी यह एक बहुत ही जटिल समस्या है</b> लेकिन <b>अभी के समय में कोरोना बीमारी के सामने कोई भी समस्या छोटी है</b> !</div><div>जब हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने 21 दिन का संपूर्ण लॉक डाउन देश में घोषित किया तब सभी के मन में यही विचार आया कि हमें कोरोना के रोकथाम के लिए यह उपाय किया गया है एवं हम स्वयं को कोरोनावायरस नामक बीमारी से सुरक्षित पर लेंगे आज जैसा कि हम देख पा रहे हैं कि हम कोरोना को तो रोकथाम कर रहे हैं लेकिन इस बीमारी केेेेेे नुकसान के साथ ही कुछ फायदेे भी हुए !<div>मेरे मित्रों मेरा यह ब्लॉग लिखने का मेन उद्देश्य यही है कि मैं चाहता हूं कि जो एक नई सोच की जरूरत मैंने महसूस की है वह आप सभी के साथ में साझा करना चाहता हूं जैसा कि मैं देख पा रहा हूं <div>1.<b>दिल्ली का प्रदूषण लेबल हमेशा हाई हुआ करता था जिसके कारण से दिल्ली के मुख्यमंत्री को ऑर्ड एंड इवन सुविधा गाड़ियों में लागू करनी पड़ी थी जिससे कि प्रदूषण का स्तर कम हो सके वहीं दिल्ली के अंदर आज प्रदूषण का स्तर एकदम सामान्य हो गया है</b> एवं वहां का आसमान एकदम साफ सुथरा है इसका मुख्य कारण यह है कि जब लॉकडाउन में गाड़ियों पर प्रतिबंध लगाया गया तो लोग अपने घरों में रहने को विवश हो गए जिसके कारण गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से एवं फैक्ट्रियों के निकलने वाला धुआं सभी को प्रतिबंध हुआ जिससे का वायु का स्तर काफी अच्छा हो गया जिससे कि दिल्ली का का प्रदूषण स्तर भी काफी पहले से बेहतर हो चुका है </div><div>2 <b>वाराणसी में गंगा नदी का पानी जो कि काफी ज्यादा प्रदूषित है एवं उसको साफ एवं सुरक्षित करने के काफी प्रयास केंद्र एवं राज्य सरकारों के द्वारा भी किए जा रहे हैं</b> लेकिन उन प्रयासों के बावजूद भी हम उसको स्वच्छ करने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं उसका प्रदूषण स्तर भी काफी कम हो चुका है ! </div><div>3. <b>दिल्ली के अंदर भी यमुना नदी का पानी फैक्ट्रियों से निकलने वाले केमिकल युक्त पानी के मिश्रित होने के कारण उसका पानी काला हो गया था आजकल मैं ही प्रकाशित समाचारों में पाया गया कि दिल्ल्ली में प्रवाहित यमुना नदी का पानी भी काफी सुरक्षित हो चुका है !</b></div></div><div>3. आज जब हम शहर में चकाचौंध वाली जिंदगी जी रहे हैं जिसमें <b>प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण आसमान में तारे भी साफ दिखाई नहीं देते थे वह भी अब साफ दिखाई देने लगे हैं!</b></div><div>4. कुछ दिनों पहले एक प्रकाशित समाचार में पाया गया कि केरल में समुद्र तट के पास कछुओ ने आठ से नौ लाख अंडे दिए हैं</div></div><div>5. वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण ओजोन परत में जो ब्लैक होल हुआ वह भी अब धीमे-धीमे भरने लगा है</div><div> ऐसे अनेकों ही उदाहरण है जो कि इस कोरोना के काल में पाए गए भगवान ना करे कि कोरोना जैसी परिस्थिति कभी उत्पन्न हो लेकिन इन परिस्थितियों के साथ में जो फायदे हुए हैं हमें उस और अपना ध्यान आकर्षित करने की जरूरत है </div><div>अतः मेरी सोच यह है इस जहां पर आज हम 21 दिन का लॉक डाउन कर रहे हैं भविष्य में अगर हम साल में सिर्फ 2 दिन का जनता कर्फ्यू का पालन करें तो प्रदूषण के स्तर को काफी कम किया जा सकता है जो कि हमारे लिए ही फायदेमंद होगा यह मेरा एक विचार है अतः आप सभी महानुभाव से विनम्र निवेदन है आपको मेरे यह विचार रियल लगे यह नारियल टिप्पणी के माध्यम से मेरा मार्ग प्रशस्त करें !</div><div>धन्यवाद !</div><div>Mani Bhushan Singh</div>Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4504216475368317767.post-48703330192257242312017-04-09T10:39:00.000-07:002017-04-09T10:39:30.176-07:00बेटे भी घर छोड़ के जाते हैं..<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बेटे भी घर छोड़ के जाते हैं..<br />
<br />
अपनी जान से ज़्यादा..प्यारा लेपटॉप छोड़ कर...<br />
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अलमारी के ऊपर रखा...धूल खाता गिटार छोड़ कर...<br />
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जिम के सारे लोहे-बट्टे...और बाकी सारी मशीने...<br />
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मेज़ पर बेतरतीब पड़ी...वर्कशीट, किताबें, कॉपीयाँ...<br />
<br />
सारे यूँ ही छोड़ जाते है...बेटे भी घर छोड़ जाते हैं.!!<br />
<br />
अपनी मन पसन्द ब्रान्डेड...जीन्स और टीशर्ट लटका...<br />
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अलमारी में कपड़े जूते...और गंध खाते पुराने मोजे...<br />
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हाथ नहीं लगाने देते थे... वो सबकुछ छोड़ जाते हैं...<br />
<br />
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं.!!<br />
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जो तकिये के बिना कहीं...भी सोने से कतराते थे...<br />
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आकर कोई देखे तो वो...कहीं भी अब सो जाते हैं...<br />
<br />
खाने में सो नखरे वाले..अब कुछ भी खा लेते हैं...<br />
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अपने रूम में किसी को...भी नहीं आने देने वाले...<br />
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अब एक बिस्तर पर सबके...साथ एडजस्ट हो जाते हैं...<br />
<br />
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं.!!<br />
<br />
घर को मिस करते हैं लेकिन...कहते हैं 'बिल्कुल ठीक हूँ'...<br />
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सौ-सौ ख्वाहिश रखने वाले...<br />
<br />
अब कहते हैं 'कुछ नहीं चाहिए'...<br />
<br />
पैसे कमाने की होड़ में...<br />
<br />
वो भी कागज बन जाते हैं...<br />
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सिर्फ बेटियां ही नहीं साहब...<br />
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. . . . बेटे भी घर छोड़ जाते हैं..!(संकलित)</div>
Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4504216475368317767.post-86568388071764705372011-07-29T05:12:00.000-07:002011-07-29T05:12:52.952-07:00एक बार चिंतन तो कर ले !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">आशा व् निराशा दोनों ही एक दुसरे के पूरक शब्द है ! लेकिन इन् दोनों शब्दों का व्याकरण में जितना उपयोग नहीं है उससे ज्यादा हमारे जीवन में इनका अधिक उपयोग है क्योंकि हमारे सम्पूर्ण जीवन की बागडोर इन्ही शब्दों के आसपास घुमती रहती है !अत : ये एक शब्द न होकर हमारी जिंदगी का एक अहम् हिस्सा है ! जब हम कोई काम तहे दिल से करते है तो हम आगे से ये उमीद भी करते है की हमें संतोष जनक जबाब प्राप्त हो लेकिन जब पूरी तरह से काम पूर्ण करने के बावजूद भी उसका सही उत्तर नहीं मिलता है! तो हम बौखला जाते है तथा निराशा का दामन पकड़ लेते है एव हमारी यही इक्षा होती है की जब संतोषप्रद जबाब ही नहीं मिल रहा तो ये काम करने का कोई फायदा ही नहीं ! कई बार हमें क्रोध भी आता है और कुछ समझ भी नहीं पाते है की आखिर में हमें क्या करना चाहिए ! लेकिन हम कभी ये नहीं सोचते की आखिर क्या कारण है की हम जिस जबाब की प्रतीक्षा कर रहे थे वो हमें नहीं मिल पा रहा है कंही हमारे द्वारा किय गए कार्य में ही कोई कमी तो नहीं है ! एव यह स्थिति हर इंसान के जिंदगी में आती है ! शायद मेरे भी जिंदगी में भी और इसी कारण से शायद मै यह लिख पा रहा हु ! लेकिन जब हम ठन्डे दिमाग से सोचते है तो हमारे सामने दो कारण आते है जिनके बिना हमें संतोषजनक जबाब नहीं मिल पा रहा था ! एक तो यह की हो सकता है शायद हमारे काम में ही कोई कमी रहा गयी हो ! दूसरा कारण यह है की हमारी अपेक्षाए हमारे द्वारा किये गए कर्म से बड़ी हो जाती है ! अत : एक बार तो हमें यह विचार कर ही लेना चाहिए की कंही हम में ही तो कोई कमी नहीं क्योंकि आशा को निराशा बनने में देर नहीं लगती ! अत : हतो उत्साहित न होकर एक बार तो चिंतन जरूर कर ले !! </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><i><span style="color: #ff9900; font-family: georgia, serif;">Mani Bhushan Singh</span></i></span></div>Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-4504216475368317767.post-62841606169405500732011-07-21T08:57:00.000-07:002011-07-21T08:57:56.882-07:00खुद को पह्चाने<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"></span><br />
<div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><div>लेखिका कमलादास के पास एक किशोरी आई , जो जीवन से निराश थी ! उसे लगता था की उसकी छबी एक अच्छी लड्की की नही है ! कमला ने उससे कहा - तुम जिन पाँच बातो से सर्वाधिक नफरत करती हो वो मुझे बताओ ! लड्की ने कहा - मुझे अपनी आन्टी से सर्वाधिक नफरत है , वह मुझे पसंद नही करती! लेखिका ने कहा "तुम वो पांच बाते बताओ जिनसे तुम्हे खुशी मिलती है ! लड्की ने कहा मुझे सिन्दुरी आम सबसे प्यारा है " कमला ने फिर कहा -आत्महत्या करने से पहले सिर्फ मेरी एक बात मान लो ! कल सुबह सिन्दुरी आम लेकर आन्टी के घर जाओ ! लड्की ने चिलाते हुए कहा - मै उनसे नफरत करती हु क्यु जाउँ वन्हा ! लेकिन लेखिका ने उसे किसी तरह उसे राजी कर लिया ! एक हफ्ते बाद वो लड्की उसे साईकिल चल्ती हुई नजर आई , तो उन्होने चौंकते हुए सवाल किया ! इस पर लड्की ने जबाब दिया की आपकी तरकीब काम कर गई ! आन्टी से मिल्ने के बाद ही पता चला की वह कितनी अच्छी है ! अर्थात </div><div>हम किस्सी भी व्यक्ति के बारे मे दुर से ही आकलन नही कर सकते की उस व्यक्ति का स्वभाव कैसा है ! तथा वह हमारे साथ् मे कैसा व्यवहार करेगा !जब की किसी को बेहतर तरिके से जानने के लिए उसे करिब से जानना सबसे जरुरी होता है ! </div></span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><i><span style="color: #ff9900; font-family: georgia, serif;">Mani Bhushan Singh</span></i></span></div></div>Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4504216475368317767.post-82943907904442868652011-07-14T00:48:00.000-07:002011-07-14T00:48:15.336-07:00ये कैसी शर्म<span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: x-small;"></span><br />
<div>आज के इस युग में इस २१ वि शताब्दी में जंहा पर मर्द व् औरतो के मध्य में कोई अंतर नहीं रहा है ! हम इसी बात को लेकर हमेसा लड़ते रहते है की औरतो को भी सामान हक़ मिलना चाहिए एव मै भी इस बात का समर्थन पूर्णतया करता हू ! की औरत व् मर्द में कोई अंतर नहीं है व् जो काम मर्द कर सकता है वो एक औरत भी अच्छी प्रकार से कर सकती है ! अब तो हमारे संविधान में भी इसको स्थान दिया गया है व् औरतो के लिये आरक्षण है !</div><div>औरत को ममता ,शर्म ,हया की मूर्ति माना जाता है ! औरत के जितना क्षमाशील ,सहनशील ,दयालु प्रवृति का कोई भी प्राणी शायद इस जगत में नहीं है !औरत के बिना मर्द का कोई अस्तित्व ही संभव नहीं है क्योंकि पुरुष को जन्म देने वाली जननी वह औरत ही होती है जो की नव माह तक दर्द को सहन करके बच्चे को जन्म देती है ये सब बाते को मै तहे दिल से स्वीकार करता हु ! </div><div> लेकिन जंहा तक शर्म की बात है तो शर्म हर इंसान में होना चाहिए ये बात सही है लेकिन उसकी भी एक सीमा है हम शर्म का आवरण ऐसा भी ना ओढ़ ले की स्वयं का पतन व् अपनी सोच को ही ख़तम कर दे ! तथा खुद का तो विनाश कर ही रहे है साथ में अपने सामने वाले व्यक्ति का भी जिससे हम सामना कर रहे है !</div><div>जब कोई लड़की किसी रास्ते से गुजर रही होती है और अचानक उसी मार्ग से कोई लड़का गुजर रहा हो तो वह शर्म से अपना सर झुका लेती है अब बताये ये आखिर में कैसी शर्म ! अब लड़के ने तो लड़की को ना ही कोई एक भी अपशब्द कहा ना ही कोई गलत व्यवहार किया तो फिर ये सर झुकाना कुछ ज्यादा ही शर्म नहीं है एक तो वैसे भी लड़के बदनाम ही है और फिर अगर स्त्री के साथ कुछ होता है तो पूरी मर्द जाती बदनाम होती है ये कैसा समाज है और इन् सब का मुख्य कारण हमारी समाज की मानसिक अवधारणा व् नजरिया है जो की समाज ने बना रखी है! हम हमेसा यही कहते है की <b>"ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती "</b>लेकिन ये जो शर्म है इसने तो सबको बदनाम कर दिया है ! यंहा ताली तो एक हाथ से ही बज रही है और लोग दुसरे ताली बजाने वाले हाथ को धुंडने लगते है </div><div> हम जो भी पिक्चर फ़िल्म देखते है वह समाज पर ही आधारित होती है तथा वो एक तरह से समाज में होने वाले गतिबिधियो से हमारा सामना करते है ! मुझे इसी बात पर एक पिक्चर फ़िल्म <b>:ऐतराज"</b> की याद आती है जिसमे खलनायिका की भूमिका अदा कर रही प्रियका चोपड़ा नायक अक्षय कुमार पर स्वयं का बलात्कार का आरोप लगाती है जो की गलत होता है लेकिन सभी लोग तो यही मान लेते है है की कोई औरत स्वयं अपना इज्ज़त गँवा नहीं सकती जो की बाद में सच के सामने आने पर ये जाहिर हो जाता की नायक बेकसूर होता है ! </div><div>अत:ये जो अधिकाधिक शर्म है वह कंहा तक उचित है जो किसी को बिना गुनाह के ही सजा दिला दे !! <br />
--<br />
<i><span style="color: #ff9900; font-family: georgia, serif;">Mani Bhushan Singh</span></i></div>Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4504216475368317767.post-22578843272606215612011-06-14T01:46:00.000-07:002011-06-14T01:47:43.169-07:00कुछ खास नही ........<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;">कुछ खास नही,फिर भी आस है </span><br />
<div>जीवन जिने का उल्लास है !</div><div></div><div>हर पल नया कुछ पाते है </div><div> छोड़ पीछे भी बहुत कुछ जाते है !</div><div><br />
</div><div>ख़ुशियो का तो हम करते है स्वागत </div><div>गम को पीछे छोड़ जाते है !</div><div><br />
</div><div>यही जिंदगी का राज है </div><div>कुछ खास नही,फिर भी आस है<br />
<div>जीवन जिने का उल्लास है !!</div></div><div><br />
</div><div>हर गम से लेते है हम सबक </div><div>कामयाबी पर मानते है ख़ुशी! </div><div><br />
</div><div>एक छोटे से दुःख से हम </div><div>हो जाते है दुखी : </div><div>लगता है जैसे हो गई जिंदगी बर्बाद !</div><div><br />
</div><div>फिर भी हार नहीं माना है </div><div>क्योंकि संघर्ष करना हमने जाना है !<br />
<br />
</div><div>कुछ खास नही,फिर भी आस है<br />
<div>जीवन जिने का उल्लास है !!</div></div><div><br />
</div><div>ख़ुशी कितनी भी छोटी क्यों न हो </div><div> दूर उसे जाने नहीं देते हम !</div><div><br />
</div><div>गम कितना ही बड़ा क्यों ना हो </div><div>पास उसे आने नहीं देते हम !</div><div><br />
</div><div>बस यही खुबिया ऐसी है जो इंसान</div><div> होने का एहसास दिलाती है !</div><div><br />
</div><div>बहुत कुछ पाने के लिए थोडा</div><div>खोने की प्रवृति हमें सिखाती है !</div><div><br />
</div><div>कुछ खास नही,फिर भी आस है<br />
<div>जीवन जिने का उल्लास है !</div></div><div><br />
</div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><i><span style="color: #ff9900; font-family: georgia, serif;">Mani Bhushan Singh</span></i></span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;"></span><br />
<div style="font-size: 14px;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;"><br />
</span></div></div>Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4504216475368317767.post-70700324780746328652011-06-06T04:23:00.000-07:002011-06-06T04:23:31.287-07:00थोडा बहुत लालच<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;">एक ही शब्द के अनेको अर्थ होते है और यह अर्थ भी मनुष्य स्वयं अपनी सोच के अनुसार बनाता है कई ऐसे शब्द है जिनको हम अनुचित मानते है व् कुछ को उचित लेकिन जिसमे हमारा फायदा होता है उसे हम सही मान लेते है जो हमारे लिए नुकसानदायक उसे हम गलत मान लेते है लेकिन इन् सब में सर्वाधिक आवश्यक हमारी सोच है !क्योंकि इनके अर्थ भी हमारी सोच पर ही निर्भर करती है हम कहते है की <span class="Apple-style-span" style="color: red;"><b>"लालच बुरी भला है"</b></span> वँही दूसरी तरफ "<b><span class="Apple-style-span" style="color: red;">प्रतिस्पर्धा से मनुष्य का विकास होता है</span></b> " !प्रतिस्पर्धा को हम उचित मानते है लेकिन लालच को बुरा ! अब यदि हम अपनी सोच को बदले तो प्रतिस्पर्धा में भी लालच है ,क्योंकि लालच के बिना तो प्रतिस्पर्धा है ही नहीं ! जब मनुष्य में किसी से ज्यादा पाने की ईच्छा होती है तब उसमे लालच का भाव उत्पन होता है तभी उसका विकास होता है अत: मनुष्य में थोडा बहुत तो लालच होना ही चाहिए ,क्योकि इंसान यदि लालच का भाव नहीं रखता है और जितना है उसमे ही संतोष रखता है तब तो यह प्रक्रति स्थिर हो जाएगी व् विकास रुक जायेगा!अत: थोडा बहुत तो लालच होना ही चाहिए लेकिन एक सीमा तक !<br />
<br />
</div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;">हर इंसान की सोच अलग होती है उसकी प्रकृति भी अलग होती है और हर इंसान अपनी प्रकृति के अनुसार ही कर्म करता है !एव यह उसके स्वाभाव पर निर्भर करता है वह किस प्रकार का कर्म करता है !तथा उसकी सोच कैसी है ! हमारे भारत देश में हर किसी को अपने विचारो की अभिव्यक्ति की पूर्णतया स्वंत्रता है !</div><div style="text-align: left;">एव मेरा जंहा तक मानना है तो हम जिस समाज में जीवन व्यतीत कर रहे है यंहा पर <span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: x-small;">90 </span> % व्यक्ति का कोई भी उद्देश्य बिना लालच के नहीं होता है चाहे हम इसे स्वीकार भले ही नहीं करे लेकिन सच्चाई तो अस्वीकार नहीं किया जा सकता !</div><div style="text-align: left;"><b>लालच का अर्थ यह नहीं की हम बुरे कर्मो में इसका प्रयोग करे और यह सोच ले की हम तो प्रकृति का विकाश कर रहे है अपितु यदि हम थोडा सा अपनी सोच बदले तो यही लालच हमारा कर्तब्य बन जायेगा !</b></div><div style="text-align: left;">जैसे -- यदि कंही पर कोई गलत काम हो रहा है तो हम यह सोचते है की हमें इससे क्या लेना लेकिन यदि हम अपनी सोच को बदलकर ये सोचे की क्या पता ये हमारे साथ भी हो सकता है तब हमें हमारा <b><span class="Apple-style-span" style="color: red;">स्वार्थ का लालच</span></b> ये गलत काम रोकने पर मजबूर कर देगा ! </div><div style="text-align: left;">मेरा उद्देश्य किसी भी व्यक्ति विशेष की भावना को ठोश पहुचाना उद्देश्य नहीं है ! यदि किसी की भी भावना आहत होती है तो मै उसके लिए क्षमा प्रार्थी हु ......</div></div></div></div>Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4504216475368317767.post-1998656378036956822011-06-04T06:49:00.000-07:002011-06-04T07:30:11.109-07:00खुशी या दुखी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="font-family: arial;">खुशी एक ऐसा कारण है जिसको पाने की अनवरत कोशिस इन्सान करता रहता है व जब तक उसे खुशी प्राप्त नही होती है व लगातार लगा रहता है !</div><div style="font-family: arial;">गम व खुशी दोनो ही ऐसे है जिनके बिना इस जिन्दगी का अस्तित्व ही सम्भव नही है! अत : जिन्दगी का सन्तुलन बनाए रखने के लिए गम व खुशी दोनो समान रुप से होना आवश्यक होता है ! लेकिन हम बचपन से एक कहावत सुनते आ रहे है की <b><span class="Apple-style-span" style="color: red;">ज्यादा खा लेने से बदहजमी हो जाती है </span>! </b>इसी प्रकार गम व खुशी भी दोनो का सन्तुलन समान रहन चाहिए नही तो बदहजमी की स्थिति बन जाती है !और बदहजमी की स्थिति मे उल्टिया होने लगती है एव पेटदर्द की शिकायत व अनेको प्रकार की समस्याये सामने प्रकट होती है जिसका सामना करने मे मनुष्य स्वयम को असहज महसुस करता है ! </div><div style="font-family: arial;"> उसी प्रकार से मनुष्य हताश होने की स्थिति मे अनवरत खुशी पाने की कोशिश मे रहता है ,क्योंकी वह जिन्दगी मे आने वाले गम व परेसानी से तंग आ चुका होता है और यह बात सोलह आने सच् भी है और ऐसा होना भी चाहिए क्योंकी<span class="Apple-style-span" style="color: lime;"> <b>खुश रहना हर मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है</b></span> ! लेकिन इन् सब मे हम ये भुल जाते है की ज्यादा खुशी पाने के संघर्ष मे हम स्वयम गम को निमन्त्रण देने लगते है और ऐसे परिस्थिति मे मानसिक तनाव ,अनिद्रा इत्यादी व्याग्री से ग्रसित होने लगते है ! एव जो हमारे पास मे है हम उसका भी सही तरह से उपभोग नही कर पाते है और अधिक खुशी पाने मे अपनी जिन्दगी गम ,दुख ,निराशा को भर लेते है !</div><div style="font-family: arial;"> अत : हर उपभोग की एक सिमा होती है और हमे उस सीमा का पालन करते हुए ही किसी का उपभोग <span class="Apple-style-span" style="line-height: 25px;">करना </span>चाहिए नही <span class="Apple-style-span" style="line-height: 25px;">तो </span> बदहजमी की स्थिति बन जाएगी व खुशी गम का कारण बन जाएगा !!</div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: x-small;"><br />
</span><i style="font-family: arial; font-size: small;"><span style="color: #ff9900; font-family: georgia, serif;">Mani Bhushan Singh</span></i></div></div>Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4504216475368317767.post-35528140795397230272011-06-02T23:01:00.000-07:002011-06-02T23:01:44.335-07:00मेरा अपना प्यारा गांव<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"></span><br />
<div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/-yD7-zDonZMw/TeZM6HC48mI/AAAAAAAAAQs/B7wKmnuywQM/s1600/pga151_village_scene.75173307_std.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="253" src="http://4.bp.blogspot.com/-yD7-zDonZMw/TeZM6HC48mI/AAAAAAAAAQs/B7wKmnuywQM/s320/pga151_village_scene.75173307_std.jpg" width="320" /></a></div>छोटा सा मगर सबसे न्यारा</div><div>मेरा अपना प्यारा गांव !</div><div>जिसके खेतो मे मै करता</div><div>बचपन की अठ्खेलिया !</div><div>ताजी हवा जहाँ इठ्लाती थी </div><div>महक दिल मे छोड जाती थी !</div><div>चिडियो का चहचहाना</div><div>फुलो का महकना !</div><div>आज उसकी याद दिलाता है,</div><div>छोटा सा मगर सबसे न्यारा,</div><div>मेरा अपना प्यारा गांव !</div><div>सौन्धि महक थी जिस मिट्टी की </div><div>रोम रोम मे बस जाती थी !</div><div>पुरब की पुरवैया ,</div><div>दुध देती गैया </div><div>आज उसकी याद दिलाती है !</div><div><div>छोटा सा मगर सबसे न्यारा</div><div>मेरा अपना प्यारा गांव !</div></div><div>जँहा बिता मेरा बचपन </div><div>बढे बुजुर्गो का पाया प्यार</div><div>दादा -दादी के किस्से </div><div>जिनको सुन मै बड़ा हुआ !</div><div>भोर सबेरे खेतो में जाना </div><div>मटर के दानो को </div><div>चोरी करके खाना ,</div><div>ये सब मुझे दिलाते है उसकी याद</div><div><div>छोटा सा मगर सबसे न्यारा</div><div>मेरा अपना प्यारा गांव !</div></div><div>प्रेम ,समपर्ण,त्याग का भाव </div><div>पाया इसे मैंने अपने गाँव से<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/-mCcUi5ZamFA/TeZN6yCs4EI/AAAAAAAAAQ0/i1eFZrc64n4/s1600/71142741_87780957c1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="237" src="http://2.bp.blogspot.com/-mCcUi5ZamFA/TeZN6yCs4EI/AAAAAAAAAQ0/i1eFZrc64n4/s320/71142741_87780957c1.jpg" width="320" /></a></div><br />
</div><div>हिन्दु व मुस्लिम जंहा </div><div>पर रहते दोनों साथ - साथ </div><div>शाम को होता जंहा अजान</div><div>दिन में करते सब माता का गुणगान !</div><div>शायद अब ये सब खो गया है! </div><div>ना अब कोई प्रेम से बोलता है </div><div>ना अब कोई किसी को टोकता है! </div><div>सब है अपनी मर्जी के मालिक </div><div>अब सिर्फ रह गयी तकरार की बारी !</div><div>न जाने वो कंहा खो गया है </div><div><div>छोटा सा मगर सबसे न्यारा</div><div>मेरा अपना प्यारा गांव !</div></div><div>इसका कारन कोई न जाने </div><div>शायद हम सब ने मिलकर </div><div>उस सभ्यता को ही मिटा डाली !<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/-AR2EhbxuaJY/TeZODlIpnGI/AAAAAAAAAQ4/vKdUdPzJERU/s1600/run1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="212" src="http://2.bp.blogspot.com/-AR2EhbxuaJY/TeZODlIpnGI/AAAAAAAAAQ4/vKdUdPzJERU/s320/run1.jpg" width="320" /></a></div><br />
</div><div> अब तो हर तरफ </div><div>शहर की चकाचौंध है </div><div>अब तो नीला आसमान </div><div>सिर्फ नाम का ही नीला है </div><div>धुए ने उसे बना डाला</div><div> अपना टीला है !</div><div>हर तरफ हाहाकार है </div><div>न जाने कौन कौन बीमार है </div><div>बस भाग रहे है भाग रहे है !</div><div>न जाने कौन किसके </div><div>पीछे भाग रहे है !</div><div>शायद इन् सब में </div><div>मै भी था एक प्रतिभागी </div><div>इस विनाश में बन गया था सहभागी </div><div>दौड़ कर जब मै जब थक गया </div><div>तो हारकर यु बैठ गया </div><div>अब करता हू मै अपना विचार </div><div>क्या पाया व् खोया मैंने </div><div>समझ में न आया मेरे !</div><div>अब आती मुझे उसकी याद </div><div><div>छोटा सा मगर सबसे न्यारा</div><div>मेरा अपना सबसे प्यारा गांव !!<br />
<br />
Mani Bhushan Singh<br />
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</div></div><div><br />
</div><div><br />
</div><div></div></div>Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4504216475368317767.post-82999363731825001662011-06-01T01:11:00.000-07:002011-06-01T01:20:33.930-07:00पैमाना या अपनी सोच को थोपना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/-Xu_tLyEHJDY/TeX2Ruxk0wI/AAAAAAAAAQk/GKULe4uAPV8/s1600/pos.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="146" src="http://1.bp.blogspot.com/-Xu_tLyEHJDY/TeX2Ruxk0wI/AAAAAAAAAQk/GKULe4uAPV8/s320/pos.jpg" width="320" /></a></div><br />
</div><div style="text-align: left;">यदि हम कहते है की हमने सब कुछ जान लिया है तो यह कहना क्या उचित होगा !यदि हम किसी को कहते है मै जो तुम्हे बता रहा हू वही सही है और यह गलत है और वह सही है यह कहना तो उचित नहीं होगा आखिर में हम उसे किस पैमाने पर नाप कर या किसी मानक <span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">स्तर</span> को <span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">मानकर</span> यह सब <span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">बाते</span> उसे <span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">कह रहे </span> है ! <span class="Apple-style-span" style="line-height: 25px;"><span style="font-size: small; line-height: normal;">क्योंकी </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: small; line-height: normal;">हमारी </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: small; line-height: normal;"> </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: small; line-height: normal;">एक </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: small; line-height: normal;"> </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: small; line-height: normal;">मानसिक </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: small; line-height: normal;"> </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: small; line-height: normal;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: 14px;">अवधारणा बन चुकी है की हमने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह पर्याप्त है और वही सही है! और उसी के आधार पर हम अपना ज्ञान बाटकर किसी को सही तो किसी को गलत कह रहे है ! लेकिन क्या हम कभी उस सक्श से ये कभी पुछते है कि आपने ऐसा क्यो किया!</span><b style="font-size: 14px;"> नही </b>क्योंकी यदि हम उससे ये सवाल पुछते है हमारा ज्ञान जो कि एक अभिमान का रुप ले </span></span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;">चुका </span><span class="Apple-style-span" style="line-height: 25px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: small; line-height: normal;"> है उसे कभी स्वीकार नही करने देगा </span><span class="Apple-style-span" style="line-height: normal;"> </span></span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;">और कोई निश्चित तो नही जो आपने ज्ञान प्राप्त किया है वाहि अन्त है और बस उसके बाद और </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;">कुछ </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;"> नही ! लेकिन यह कहना सर्वथा अनुचित है क्योंकी इस जगत मे कोई ऐसा नही है जो एक<b> <span class="Apple-style-span" style="font-size: 14px;">सिमित या मानक स्तर</span></b><span class="Apple-style-span" style="font-size: 14px;"> </span>कि परिभाषा दे सके ! क्योकी हर इन्सान मे कमिया व खुबिया दोनो ही होती है व इस समाज मे कमियो को सामने लाने के लिए किसी सहारे कि जरुरत नही होती है ,लेकिन खुबिओ को सामने लाने के लिए उचित मार्गदर्शन कि जरुरत होती है !लेकिन यह सब शायद ही सम्भव हो पाता है क्योंकी इसके कई कारण है जो यह सम्भव नही होने देते और यह एक सच्चाई भी है जिसे हम स्वीकार करे या ना करे लेकिन यह हमारे समाज मे आज भी है व आगे भी रहेगा ! अत: यदि हम स्वयम के </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;">स्वार्थ </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;"> को </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;">भुलाकर </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;"> यदि </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;">सच्चे</span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;"> मन से सहायता करे तो किसी के प्रति </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;">किसी के मन मे </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;">हीन भावना उत्पन नही होगी ! </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;">व ज्ञान का स्तर भी </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;">बडेगा !</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; line-height: 25px;">साथ ही मे यह भी कहना चाहुंगा कि ऐसा भी नही है कि कोई ज्ञान का अर्गन करने वाले से पुछता नही है अवश्य पुछते है लेकिन <b style="font-size: 14px;">कभी -कभी कंही -कंही</b><b> </b>पर ही जो कि जो कि नगण्य है !!</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="line-height: 25px;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Times, 'Times New Roman', serif;">Mani Bhushan Singh</span></span></div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><br clear="all" /></span></div>Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4504216475368317767.post-45075092670209958762011-05-30T00:10:00.000-07:002011-05-30T00:45:05.547-07:00खामोशी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/-jAaBrohsA88/TeNK-fkWTsI/AAAAAAAAAQY/b5mp-Fow_cI/s1600/khamoshi.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://2.bp.blogspot.com/-jAaBrohsA88/TeNK-fkWTsI/AAAAAAAAAQY/b5mp-Fow_cI/s1600/khamoshi.jpg" /></a></div>खामोशी एक ऐसा गुण है जिसके कारण इंसान की बर्बादी व् आबादी दोनों ही होती है ,लेकिन आबादी तो बहुत ही कम होती है ,लेकिन बर्बादी ही हमेशा होता है क्योंकि इंसान जब खामोशी को धारण कर लेता है तो लोग उसे उसकी एक कमजोरी समझकर उसका गलत फायदा उठाने लगते है भले ही वो खामोशी हमने उस व्यक्ति को इज्जत देने के लिये ही क्यों न धारण कर रखा हो ! अत: अब मुझे तो समझ में नहीं आ रहा है की क्या अपनी खामोशी को तोड़ करके हमें उस व्यक्ति को कड़े शब्दों में उत्तर देना चाहिए या अपनी खामोशी को कायम रखना चाहिए लेकिन यदि हम फिर से खामोश रहते है तो वो हमारी एक आदत बन जाती है तथा जिसकी क्षतिपूर्ति हमें सम्पूर्ण जिंदगी करना पड़ता है व् समाज के सभी व्यक्ति उसका निरंतर फायदा उठाना शुरु कर देते है ! अत: रियल तो यही है की खामोशी को हमें तोडना पड़ेगा व् जरुरत पड़ने पर जबाब भी देना पड़ेगा !<br />
Mani Bhushan Singh</div><div style="text-align: left;"><br />
</div></div>Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4504216475368317767.post-73123854445728300202011-05-28T23:38:00.000-07:002011-05-30T00:43:16.763-07:00उधार का दबाव<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/-8GxtvX-Xb4M/TeNKfGH5GFI/AAAAAAAAAQQ/XAEr5wLb6W8/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://2.bp.blogspot.com/-8GxtvX-Xb4M/TeNKfGH5GFI/AAAAAAAAAQQ/XAEr5wLb6W8/s1600/images.jpg" /></a></div>संसार में कई बार ऐसा वक्त आता है की जरूरत के अनुसार मनुष्य को उधार लेना पड़ता है अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ! और ऐसे परिस्थति में जो व्यक्ति हमें उधार देता है वो हमारी सहायता करता है , लेकिन कई बार ऐसी परिस्थति आ जाती है की हमे ऐसे व्यक्ति से उधार लेना पड़ता है जिससे पैसे लेने के लिए हमारा ईमान हमे इजाजत नहीं देता है लेकिन हमें तो अपनी आवश्यकता को पूर्ण करना है वो भले ही किसी भी हालत में ,और इस मौके का फायदा वो लालची स्वाभाव का व्यक्ति उठाता है ,और हमें वो तरह तरह से मानसिक क्षति पहुचाता है व् हमें उसके कहे गए कार्य को पूर्ण करना पड़ता है क्योंकि हमने उससे उधार लिया है तथा हम उसे मना भी नहीं कर सकते ! इस प्रकार से हम स्वयम को उधार के दबाव के नीचे दबाते जाते है व् इसी चिंता से ग्रसित होकर अपनी आत्मा को मार देते है एव न ही हां उसका उधार चूका पाते है !<br />
अत: व्यक्ति को जंहा तक कोशिस हो उधार नहीं लेना चाहिए क्योंकि वो कहावत तो सूनी ही होगी <br />
"पावँ उतना ही फैलाये जितनी चादर लम्बी हो "<br />
अत: अपनी आवश्यकता के अनुसार ही खर्च करना चाहिए न की उधार का दबाव स्वयं पर वहां करे !<br />
Mani Bhushan Singh</div>Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4504216475368317767.post-83632634165861762462011-05-19T00:02:00.000-07:002011-05-30T00:48:16.378-07:00मुहाबरे व जिन्दगी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/-orNnEYtIfYs/TeNLs-EhLXI/AAAAAAAAAQc/Yp5h4lGu5zI/s1600/images+%25283%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/-orNnEYtIfYs/TeNLs-EhLXI/AAAAAAAAAQc/Yp5h4lGu5zI/s1600/images+%25283%2529.jpg" /></a></div>सम्पूर्ण जिन्दगी एक मुहाबरा है और देखा जाए तो यह कथन भी सोलह आने सच् है ,देखिए ना इस बात मे भी एक मुहाबरा आ गया ! "सोलह आने सच्"<br />
अर्थात हमारी पुरी जिन्दगी मुहाबरो से घिरी हुई है या मुहाबरे हमारी जिन्दगी से यानी कि दोनो एक दुसरे पुरक है तथा दोनो का आस्त्तिव एक दुसरे के बिना अधुरा है ! इन्सान जो भी कर्म करता है वो मुहाबरा बन जाता है लेकिन हमारी जिन्दगी कि सच्चाई यह है कि हम मुहाबरो को सिर्फ एक पढने कि वस्तु मान कर पढ तो लेते है लेकिन उसे कभी अपनी जिन्दगी मे उत्तारने का प्रयास नही करते है क्योकी हमारी एक मानसिक अवधारणा यह है कि मुहाबरो का वास्तविक जिन्दगी से तो कोइ आस्तित्व ही नही जबकी हम यह भुल जाते है मुहाबरे ,कहावते, लोकौक्तिया यह सभी हमारी जिन्दगी से ही आधारित होती है व यदि मनुष्य इन्न्को अपनी जिन्दगी मे उत्तार लेता है तो जिन्दगी मे कडी से कडी धुप मे भी कोई परेसानी का सामना नही करना पडेगा क्योकी अन्गीनत ऐसे मुहाबरे है जिससे इन्सान कि वास्तविकता का ज्ञान होता है जैसे ---<br />
"अब आया उट पहाड के नीचे " अर्थात मनुष्य को कभी भी अपनी सीमा को नही भुलना चाहिए <br />
"नाम बढे व दर्शन छोटे " अर्थात नाम के अनुरुप कर्म नही <br />
"अध्जल गगरी छलकत जाए" अर्थात थोडा स पा लेने पर इत्तराने का भाव !<br />
Mani Bhushan Singh</div>Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4504216475368317767.post-68886853474651873032011-05-17T23:08:00.000-07:002011-05-30T00:50:18.362-07:00ना ना कहने की आदत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/-JDSCSUkhoTw/TeNMMymn9lI/AAAAAAAAAQg/SuftjS7YuzY/s1600/images+%25284%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://2.bp.blogspot.com/-JDSCSUkhoTw/TeNMMymn9lI/AAAAAAAAAQg/SuftjS7YuzY/s1600/images+%25284%2529.jpg" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">इस संसार मे बढे बुजुर्ग कहते है कि सभी कि बातो को मानना चाहिए , और यह बात भी सही है कि हमे सभी लोगो का आदर करते हुए उनकी बातो को मानना चाहिए व आवश्यकता के अनुसार उस पर अमल भी करना चाहिए यह एक सभ्य व्यक्ति कि निसानी है ! लेकिन कभी कभी हमारी यहि आदत हमारे लिए परेसानी का न्योता लेकर आती है उस परस्तिथि मे व्यक्ति अगले को एक बार तो हाँ कह देता है लेकिन दुसरी समस्या होने के कारण व्यक्ति असमंजश कि स्तिथि मे आ जाता है कि अब वो उसे ना नही कह सकता ,इसी कारण से व्यक्ति तनाव कि स्तिथि मे पहुँच जाता है व अपनी मानसिक अस्थिरता के कारण चिन्ता मग्न होकर किसी भी कार्य को पूर्ण रुप से नही कर पता है !</span><br />
<div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">क्योंकी अब उसे यह चिन्ता रहती है कि वह उस व्यक्ति को क्या जबाब देगा उस परिस्त्थी मे व्यक्ति कि स्तिथि उसी प्रकार हो जति है जैसे</span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><span class="Apple-style-span">" धोबी का कुता न घर का ना घाट का "</span></span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><span class="Apple-style-span">अतः मनुष्य को कभी कभी ना कहने कि भी आदत डाल लेनी चाहिए तथा यह चिन्ता नही करनी चाहिए कि अग्ली व्यक्ति के सामने उसकी क्या छबी रहेगी -क्योंकी अगर जिस व्यक्ति को आपने मना कर दिया वह यदि आपका सच्चा हमदर्द होगा तो वह आपकी परेसानी को अवश्य ही समझेगा !!!!!!!</span></span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><span class="Apple-style-span">Mani Bhushan Singh</span></span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><span class="Apple-style-span"><br />
</span></span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><span class="Apple-style-span"><br />
</span></span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><span class="Apple-style-span"><br />
</span></span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><span class="Apple-style-span"><br />
</span></span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><span class="Apple-style-span"><br />
</span></span></div></div>Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4504216475368317767.post-90137706186916751122011-05-17T00:39:00.000-07:002011-05-30T00:44:14.375-07:00विचारो की अभिव्यक्ती<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/-v1b-lfGUACQ/TeNKxot7n3I/AAAAAAAAAQU/ZEQVg5AX3CY/s1600/images+%25282%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/-v1b-lfGUACQ/TeNKxot7n3I/AAAAAAAAAQU/ZEQVg5AX3CY/s1600/images+%25282%2529.jpg" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">इस संसार में हर इन्सान को सभी तऱ्ह की स्वन्त्रता है ! विशेष कर हमारे भारत देश में स्वन्त्रता के लिये हमारे संविधान में ५ प्रकार के अधिकार दिये गये है ! मै यहा पर कुच्छ ऐसे हि बातो के बारे में बात कर रहा हु! हमारी एक नियत सोच बनी हुई है की जो छोटे बचे होते है उनके विचारो को जान कर क्या करना वो कोई काम के थोडें ही है ! इस प्रकार से यदि कोई सोच हमारे लिये लाभप्रद हो तो भी हम उसे अपने पास नही आने देते !</span><br />
<div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">इसका दुसरा कारण यह भी है की मनुष्य का स्वयं का अभिमान उसे कभी इस बात को स्वीकार नही करने देगा की कोई दुसरा व्यक्ति हमे हमारे बारे में कुच्छ कहे क्योंकी एक नकारात्मक सोच जिसे हमने अपने मास्तिक में स्थान दे रखा है वो इसे कभी स्वीकार नही करने देगा क्योंकी उस सोच के अनुसार जो विचार हमे अन्य व्यक्ति हमारे बारे में प्रकट करेगा वो गलत ही होगा !</span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">इस प्रकार से एक तो हमने किसी भी व्यक्ति की विचारो की अभिव्यक्ती को प्रकट होने से पहले ही रोक दिया चाहे वो हमसे छोटा या बडा कोई भी हो !</span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">इसका सबसे बडा नुकसान हमे ही है क्योंकी एक तो उस व्यक्ति के मन में आपके प्रति श्रद्धा का भाव काम हो जायेगा व व्यक्ति के मन में एक हीन भावना प्रकट होगी जीससे की निकट भविष्य में भी कभी अपने विचार प्रकट नही करेगा व उसका समग्र विकास नही हो पायेगा तथा दुसरा हानि यह है की यदि हमने उस विचार को सून लिया होता तो शायद वो हमारे काम का भी हो सकता था ,अतः हमने स्वयं के ही नुकसान को ही निमंत्रण दिया !</span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">रहीम दास के दोहे की उक्त पंक्तीया इस प्रकार से सार्थक है </span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><span class="Apple-style-span" style="-webkit-border-horizontal-spacing: 2px; -webkit-border-vertical-spacing: 2px; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; line-height: 24px;"><b> रहिमन देख बड़ेन को लघु न दीजिये डार।<br />
जहाँ काम आवे सुई कहा करै तलवार।।</b></span></span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><span class="Apple-style-span"><span class="Apple-style-span" style="-webkit-border-horizontal-spacing: 2px; -webkit-border-vertical-spacing: 2px; line-height: 24px;">अतः मनुष्य को सभी के विचारो को सुनना चाहिये व सोच समझ कर स्वयं के अनुसार करना चाहिये ,लेकीन किसी के विचारो के अभिव्यक्ती को नष्ट नही करना चाहिये !!.......</span></span></span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><span class="Apple-style-span"><span class="Apple-style-span" style="-webkit-border-horizontal-spacing: 2px; -webkit-border-vertical-spacing: 2px; line-height: 24px;"> Mani Bhushan Singh</span></span></span></div></div>Mani Singhhttp://www.blogger.com/profile/04337436144483428144noreply@blogger.com0