इस संसार में हर इन्सान को सभी तऱ्ह की स्वन्त्रता है ! विशेष कर हमारे भारत देश में स्वन्त्रता के लिये हमारे संविधान में ५ प्रकार के अधिकार दिये गये है ! मै यहा पर कुच्छ ऐसे हि बातो के बारे में बात कर रहा हु! हमारी एक नियत सोच बनी हुई है की जो छोटे बचे होते है उनके विचारो को जान कर क्या करना वो कोई काम के थोडें ही है ! इस प्रकार से यदि कोई सोच हमारे लिये लाभप्रद हो तो भी हम उसे अपने पास नही आने देते !
इसका दुसरा कारण यह भी है की मनुष्य का स्वयं का अभिमान उसे कभी इस बात को स्वीकार नही करने देगा की कोई दुसरा व्यक्ति हमे हमारे बारे में कुच्छ कहे क्योंकी एक नकारात्मक सोच जिसे हमने अपने मास्तिक में स्थान दे रखा है वो इसे कभी स्वीकार नही करने देगा क्योंकी उस सोच के अनुसार जो विचार हमे अन्य व्यक्ति हमारे बारे में प्रकट करेगा वो गलत ही होगा !
इस प्रकार से एक तो हमने किसी भी व्यक्ति की विचारो की अभिव्यक्ती को प्रकट होने से पहले ही रोक दिया चाहे वो हमसे छोटा या बडा कोई भी हो !
इसका सबसे बडा नुकसान हमे ही है क्योंकी एक तो उस व्यक्ति के मन में आपके प्रति श्रद्धा का भाव काम हो जायेगा व व्यक्ति के मन में एक हीन भावना प्रकट होगी जीससे की निकट भविष्य में भी कभी अपने विचार प्रकट नही करेगा व उसका समग्र विकास नही हो पायेगा तथा दुसरा हानि यह है की यदि हमने उस विचार को सून लिया होता तो शायद वो हमारे काम का भी हो सकता था ,अतः हमने स्वयं के ही नुकसान को ही निमंत्रण दिया !
रहीम दास के दोहे की उक्त पंक्तीया इस प्रकार से सार्थक है
रहिमन देख बड़ेन को लघु न दीजिये डार।
जहाँ काम आवे सुई कहा करै तलवार।।
जहाँ काम आवे सुई कहा करै तलवार।।
अतः मनुष्य को सभी के विचारो को सुनना चाहिये व सोच समझ कर स्वयं के अनुसार करना चाहिये ,लेकीन किसी के विचारो के अभिव्यक्ती को नष्ट नही करना चाहिये !!.......
Mani Bhushan Singh
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