विचारो की अभिव्यक्ति के लिए आप सभी को धन्यवाद आप सभी के विचार ही मुझे प्रोत्साहित करते है!....

सोमवार, 30 मई 2011

खामोशी

खामोशी एक ऐसा गुण है जिसके कारण इंसान की बर्बादी व् आबादी दोनों ही होती है ,लेकिन आबादी तो बहुत ही कम होती है ,लेकिन बर्बादी ही हमेशा होता है क्योंकि इंसान जब खामोशी को धारण कर लेता है तो लोग उसे उसकी एक कमजोरी समझकर उसका गलत फायदा उठाने लगते है भले ही वो खामोशी हमने उस व्यक्ति को इज्जत देने के लिये ही क्यों न धारण कर रखा  हो ! अत: अब मुझे तो समझ में नहीं आ रहा है की  क्या अपनी खामोशी को तोड़ करके हमें उस व्यक्ति को कड़े शब्दों  में उत्तर देना चाहिए या अपनी खामोशी को कायम रखना  चाहिए लेकिन यदि हम फिर से खामोश रहते है तो वो हमारी एक आदत बन जाती है तथा जिसकी क्षतिपूर्ति हमें सम्पूर्ण जिंदगी करना पड़ता है व् समाज के सभी व्यक्ति उसका निरंतर फायदा उठाना शुरु कर देते है ! अत: रियल तो यही है की खामोशी को हमें तोडना पड़ेगा व् जरुरत पड़ने पर जबाब भी देना पड़ेगा !
Mani Bhushan Singh

शनिवार, 28 मई 2011

उधार का दबाव

संसार में कई बार ऐसा वक्त आता है की जरूरत के अनुसार मनुष्य को उधार लेना पड़ता है अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ! और ऐसे परिस्थति में जो व्यक्ति हमें उधार देता है वो हमारी सहायता करता है , लेकिन कई बार ऐसी परिस्थति आ जाती है की हमे ऐसे व्यक्ति से उधार लेना पड़ता है जिससे पैसे लेने के लिए हमारा ईमान हमे इजाजत नहीं देता है लेकिन हमें तो अपनी आवश्यकता को पूर्ण करना है वो भले ही किसी भी हालत में ,और इस मौके का फायदा वो लालची स्वाभाव का व्यक्ति उठाता है ,और हमें वो तरह तरह से मानसिक क्षति पहुचाता है व् हमें उसके कहे गए कार्य को पूर्ण करना पड़ता है क्योंकि हमने उससे उधार लिया है तथा हम उसे मना भी नहीं कर सकते ! इस प्रकार से हम स्वयम को उधार के दबाव के नीचे दबाते जाते है व् इसी चिंता से ग्रसित होकर अपनी आत्मा को मार देते है एव न ही हां उसका उधार चूका पाते है !
अत: व्यक्ति को जंहा तक कोशिस हो उधार नहीं लेना चाहिए क्योंकि वो कहावत तो सूनी ही होगी
"पावँ उतना ही फैलाये जितनी चादर लम्बी हो "
अत: अपनी आवश्यकता के अनुसार ही खर्च करना चाहिए न की उधार का दबाव स्वयं पर वहां करे !
Mani Bhushan Singh

गुरुवार, 19 मई 2011

मुहाबरे व जिन्दगी

सम्पूर्ण जिन्दगी एक मुहाबरा है और देखा जाए तो यह कथन भी सोलह आने सच् है ,देखिए ना इस बात मे भी एक मुहाबरा आ गया ! "सोलह आने सच्"
अर्थात हमारी पुरी जिन्दगी मुहाबरो से घिरी हुई है या मुहाबरे हमारी जिन्दगी से यानी कि दोनो एक दुसरे पुरक है तथा दोनो का आस्त्तिव एक दुसरे के बिना अधुरा है ! इन्सान जो भी कर्म करता है वो मुहाबरा बन जाता है लेकिन हमारी जिन्दगी कि सच्चाई यह है कि हम मुहाबरो को सिर्फ एक पढने कि वस्तु मान कर पढ तो लेते है लेकिन उसे कभी अपनी जिन्दगी मे उत्तारने का प्रयास नही करते है क्योकी हमारी एक मानसिक अवधारणा यह है कि मुहाबरो का वास्तविक जिन्दगी से तो कोइ आस्तित्व ही नही जबकी हम यह भुल जाते है मुहाबरे ,कहावते, लोकौक्तिया यह सभी हमारी जिन्दगी से ही आधारित होती है व यदि मनुष्य इन्न्को अपनी जिन्दगी मे उत्तार लेता है तो जिन्दगी मे कडी से कडी धुप मे भी कोई परेसानी का सामना नही करना पडेगा क्योकी अन्गीनत ऐसे मुहाबरे है जिससे इन्सान कि वास्तविकता का ज्ञान होता है जैसे ---
"अब आया उट पहाड के नीचे " अर्थात मनुष्य को कभी भी अपनी सीमा को नही भुलना चाहिए
"नाम बढे व दर्शन छोटे " अर्थात नाम के अनुरुप कर्म नही
"अध्जल गगरी छलकत जाए" अर्थात थोडा स पा लेने पर इत्तराने का भाव !
Mani Bhushan Singh

मंगलवार, 17 मई 2011

ना ना कहने की आदत

इस संसार मे बढे बुजुर्ग कहते है कि सभी कि बातो को मानना चाहिए , और यह बात भी सही है कि हमे सभी लोगो का आदर करते हुए उनकी बातो को मानना चाहिए व आवश्यकता के अनुसार उस पर अमल भी करना चाहिए यह एक सभ्य व्यक्ति कि निसानी है ! लेकिन कभी कभी हमारी यहि आदत हमारे लिए परेसानी का न्योता लेकर आती है उस परस्तिथि मे व्यक्ति अगले को एक बार तो हाँ कह देता है लेकिन दुसरी समस्या होने के कारण व्यक्ति असमंजश कि स्तिथि मे आ जाता है कि अब वो उसे ना नही कह सकता ,इसी कारण से व्यक्ति तनाव कि स्तिथि मे पहुँच जाता है व अपनी मानसिक अस्थिरता के कारण चिन्ता मग्न होकर किसी भी कार्य को पूर्ण रुप से नही कर पता है !
क्योंकी अब उसे यह चिन्ता रहती है कि वह उस व्यक्ति को क्या जबाब देगा उस परिस्त्थी मे व्यक्ति कि स्तिथि उसी प्रकार हो जति है जैसे
" धोबी का कुता न घर का ना घाट का "
अतः मनुष्य को कभी कभी ना कहने कि भी आदत डाल लेनी चाहिए तथा यह चिन्ता नही करनी चाहिए कि अग्ली व्यक्ति के सामने उसकी क्या छबी रहेगी -क्योंकी अगर जिस व्यक्ति को आपने मना कर दिया वह यदि आपका सच्चा हमदर्द होगा तो वह आपकी परेसानी को अवश्य ही समझेगा !!!!!!!
Mani Bhushan Singh





विचारो की अभिव्यक्ती

इस संसार में हर इन्सान को सभी तऱ्ह की स्वन्त्रता है ! विशेष कर हमारे भारत देश में स्वन्त्रता के लिये हमारे संविधान में ५ प्रकार के अधिकार दिये गये है ! मै यहा पर कुच्छ ऐसे हि बातो के बारे में बात कर रहा हु! हमारी एक नियत सोच बनी हुई है की जो छोटे बचे होते है उनके विचारो को जान कर क्या करना वो कोई काम के थोडें ही है ! इस प्रकार से यदि कोई सोच हमारे लिये लाभप्रद हो तो भी हम उसे अपने पास नही आने देते !
इसका दुसरा कारण यह भी है की मनुष्य का स्वयं का अभिमान उसे कभी इस बात को स्वीकार नही करने देगा की कोई दुसरा व्यक्ति हमे हमारे बारे में कुच्छ कहे क्योंकी एक नकारात्मक सोच जिसे हमने अपने मास्तिक में स्थान दे रखा है वो इसे कभी स्वीकार नही करने देगा क्योंकी उस सोच के अनुसार जो विचार हमे अन्य व्यक्ति हमारे बारे में प्रकट करेगा वो गलत ही होगा !
इस प्रकार से एक तो हमने किसी भी व्यक्ति की विचारो की अभिव्यक्ती को प्रकट होने से पहले ही रोक दिया चाहे वो हमसे छोटा या बडा कोई भी हो !
इसका सबसे बडा नुकसान हमे ही है क्योंकी एक तो उस व्यक्ति के मन में आपके प्रति श्रद्धा का भाव काम हो जायेगा व व्यक्ति के मन में एक हीन भावना प्रकट होगी जीससे की निकट भविष्य में भी कभी अपने विचार प्रकट नही करेगा व उसका समग्र विकास नही हो पायेगा तथा दुसरा हानि यह है की यदि हमने उस विचार को सून लिया होता तो शायद वो हमारे काम का भी हो सकता था ,अतः हमने स्वयं के ही नुकसान को ही निमंत्रण दिया !
रहीम दास के दोहे की उक्त पंक्तीया इस प्रकार से सार्थक है
रहिमन देख बड़ेन को लघु न दीजिये डार।
जहाँ काम आवे सुई कहा करै तलवार।।
अतः मनुष्य को सभी के विचारो को सुनना चाहिये व सोच समझ कर स्वयं के अनुसार करना चाहिये ,लेकीन किसी के विचारो के अभिव्यक्ती को नष्ट नही करना चाहिये !!.......
Mani Bhushan Singh