सम्पूर्ण जिन्दगी एक मुहाबरा है और देखा जाए तो यह कथन भी सोलह आने सच् है ,देखिए ना इस बात मे भी एक मुहाबरा आ गया ! "सोलह आने सच्"
अर्थात हमारी पुरी जिन्दगी मुहाबरो से घिरी हुई है या मुहाबरे हमारी जिन्दगी से यानी कि दोनो एक दुसरे पुरक है तथा दोनो का आस्त्तिव एक दुसरे के बिना अधुरा है ! इन्सान जो भी कर्म करता है वो मुहाबरा बन जाता है लेकिन हमारी जिन्दगी कि सच्चाई यह है कि हम मुहाबरो को सिर्फ एक पढने कि वस्तु मान कर पढ तो लेते है लेकिन उसे कभी अपनी जिन्दगी मे उत्तारने का प्रयास नही करते है क्योकी हमारी एक मानसिक अवधारणा यह है कि मुहाबरो का वास्तविक जिन्दगी से तो कोइ आस्तित्व ही नही जबकी हम यह भुल जाते है मुहाबरे ,कहावते, लोकौक्तिया यह सभी हमारी जिन्दगी से ही आधारित होती है व यदि मनुष्य इन्न्को अपनी जिन्दगी मे उत्तार लेता है तो जिन्दगी मे कडी से कडी धुप मे भी कोई परेसानी का सामना नही करना पडेगा क्योकी अन्गीनत ऐसे मुहाबरे है जिससे इन्सान कि वास्तविकता का ज्ञान होता है जैसे ---
"अब आया उट पहाड के नीचे " अर्थात मनुष्य को कभी भी अपनी सीमा को नही भुलना चाहिए
"नाम बढे व दर्शन छोटे " अर्थात नाम के अनुरुप कर्म नही
"अध्जल गगरी छलकत जाए" अर्थात थोडा स पा लेने पर इत्तराने का भाव !
Mani Bhushan Singh
अर्थात हमारी पुरी जिन्दगी मुहाबरो से घिरी हुई है या मुहाबरे हमारी जिन्दगी से यानी कि दोनो एक दुसरे पुरक है तथा दोनो का आस्त्तिव एक दुसरे के बिना अधुरा है ! इन्सान जो भी कर्म करता है वो मुहाबरा बन जाता है लेकिन हमारी जिन्दगी कि सच्चाई यह है कि हम मुहाबरो को सिर्फ एक पढने कि वस्तु मान कर पढ तो लेते है लेकिन उसे कभी अपनी जिन्दगी मे उत्तारने का प्रयास नही करते है क्योकी हमारी एक मानसिक अवधारणा यह है कि मुहाबरो का वास्तविक जिन्दगी से तो कोइ आस्तित्व ही नही जबकी हम यह भुल जाते है मुहाबरे ,कहावते, लोकौक्तिया यह सभी हमारी जिन्दगी से ही आधारित होती है व यदि मनुष्य इन्न्को अपनी जिन्दगी मे उत्तार लेता है तो जिन्दगी मे कडी से कडी धुप मे भी कोई परेसानी का सामना नही करना पडेगा क्योकी अन्गीनत ऐसे मुहाबरे है जिससे इन्सान कि वास्तविकता का ज्ञान होता है जैसे ---
"अब आया उट पहाड के नीचे " अर्थात मनुष्य को कभी भी अपनी सीमा को नही भुलना चाहिए
"नाम बढे व दर्शन छोटे " अर्थात नाम के अनुरुप कर्म नही
"अध्जल गगरी छलकत जाए" अर्थात थोडा स पा लेने पर इत्तराने का भाव !
Mani Bhushan Singh
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