संसार में कई बार ऐसा वक्त आता है की जरूरत के अनुसार मनुष्य को उधार लेना पड़ता है अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ! और ऐसे परिस्थति में जो व्यक्ति हमें उधार देता है वो हमारी सहायता करता है , लेकिन कई बार ऐसी परिस्थति आ जाती है की हमे ऐसे व्यक्ति से उधार लेना पड़ता है जिससे पैसे लेने के लिए हमारा ईमान हमे इजाजत नहीं देता है लेकिन हमें तो अपनी आवश्यकता को पूर्ण करना है वो भले ही किसी भी हालत में ,और इस मौके का फायदा वो लालची स्वाभाव का व्यक्ति उठाता है ,और हमें वो तरह तरह से मानसिक क्षति पहुचाता है व् हमें उसके कहे गए कार्य को पूर्ण करना पड़ता है क्योंकि हमने उससे उधार लिया है तथा हम उसे मना भी नहीं कर सकते ! इस प्रकार से हम स्वयम को उधार के दबाव के नीचे दबाते जाते है व् इसी चिंता से ग्रसित होकर अपनी आत्मा को मार देते है एव न ही हां उसका उधार चूका पाते है !
अत: व्यक्ति को जंहा तक कोशिस हो उधार नहीं लेना चाहिए क्योंकि वो कहावत तो सूनी ही होगी
"पावँ उतना ही फैलाये जितनी चादर लम्बी हो "
अत: अपनी आवश्यकता के अनुसार ही खर्च करना चाहिए न की उधार का दबाव स्वयं पर वहां करे !
Mani Bhushan Singh
अत: व्यक्ति को जंहा तक कोशिस हो उधार नहीं लेना चाहिए क्योंकि वो कहावत तो सूनी ही होगी
"पावँ उतना ही फैलाये जितनी चादर लम्बी हो "
अत: अपनी आवश्यकता के अनुसार ही खर्च करना चाहिए न की उधार का दबाव स्वयं पर वहां करे !
Mani Bhushan Singh
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