खुशी एक ऐसा कारण है जिसको पाने की अनवरत कोशिस इन्सान करता रहता है व जब तक उसे खुशी प्राप्त नही होती है व लगातार लगा रहता है !
गम व खुशी दोनो ही ऐसे है जिनके बिना इस जिन्दगी का अस्तित्व ही सम्भव नही है! अत : जिन्दगी का सन्तुलन बनाए रखने के लिए गम व खुशी दोनो समान रुप से होना आवश्यक होता है ! लेकिन हम बचपन से एक कहावत सुनते आ रहे है की ज्यादा खा लेने से बदहजमी हो जाती है ! इसी प्रकार गम व खुशी भी दोनो का सन्तुलन समान रहन चाहिए नही तो बदहजमी की स्थिति बन जाती है !और बदहजमी की स्थिति मे उल्टिया होने लगती है एव पेटदर्द की शिकायत व अनेको प्रकार की समस्याये सामने प्रकट होती है जिसका सामना करने मे मनुष्य स्वयम को असहज महसुस करता है !
उसी प्रकार से मनुष्य हताश होने की स्थिति मे अनवरत खुशी पाने की कोशिश मे रहता है ,क्योंकी वह जिन्दगी मे आने वाले गम व परेसानी से तंग आ चुका होता है और यह बात सोलह आने सच् भी है और ऐसा होना भी चाहिए क्योंकी खुश रहना हर मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है ! लेकिन इन् सब मे हम ये भुल जाते है की ज्यादा खुशी पाने के संघर्ष मे हम स्वयम गम को निमन्त्रण देने लगते है और ऐसे परिस्थिति मे मानसिक तनाव ,अनिद्रा इत्यादी व्याग्री से ग्रसित होने लगते है ! एव जो हमारे पास मे है हम उसका भी सही तरह से उपभोग नही कर पाते है और अधिक खुशी पाने मे अपनी जिन्दगी गम ,दुख ,निराशा को भर लेते है !
अत : हर उपभोग की एक सिमा होती है और हमे उस सीमा का पालन करते हुए ही किसी का उपभोग करना चाहिए नही तो बदहजमी की स्थिति बन जाएगी व खुशी गम का कारण बन जाएगा !!
Mani Bhushan Singh
ख़ुशी और गम को परिभाषित करती आपकी यह पोस्ट विचारणीय है ..आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आने का अवसर मिला ...आपकी रचनात्मकता सशक्त है ...आशा है आप इसे बनाये रखेंगे ...आपका आभार
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