एक ही शब्द के अनेको अर्थ होते है और यह अर्थ भी मनुष्य स्वयं अपनी सोच के अनुसार बनाता है कई ऐसे शब्द है जिनको हम अनुचित मानते है व् कुछ को उचित लेकिन जिसमे हमारा फायदा होता है उसे हम सही मान लेते है जो हमारे लिए नुकसानदायक उसे हम गलत मान लेते है लेकिन इन् सब में सर्वाधिक आवश्यक हमारी सोच है !क्योंकि इनके अर्थ भी हमारी सोच पर ही निर्भर करती है हम कहते है की "लालच बुरी भला है" वँही दूसरी तरफ "प्रतिस्पर्धा से मनुष्य का विकास होता है " !प्रतिस्पर्धा को हम उचित मानते है लेकिन लालच को बुरा ! अब यदि हम अपनी सोच को बदले तो प्रतिस्पर्धा में भी लालच है ,क्योंकि लालच के बिना तो प्रतिस्पर्धा है ही नहीं ! जब मनुष्य में किसी से ज्यादा पाने की ईच्छा होती है तब उसमे लालच का भाव उत्पन होता है तभी उसका विकास होता है अत: मनुष्य में थोडा बहुत तो लालच होना ही चाहिए ,क्योकि इंसान यदि लालच का भाव नहीं रखता है और जितना है उसमे ही संतोष रखता है तब तो यह प्रक्रति स्थिर हो जाएगी व् विकास रुक जायेगा!अत: थोडा बहुत तो लालच होना ही चाहिए लेकिन एक सीमा तक !
हर इंसान की सोच अलग होती है उसकी प्रकृति भी अलग होती है और हर इंसान अपनी प्रकृति के अनुसार ही कर्म करता है !एव यह उसके स्वाभाव पर निर्भर करता है वह किस प्रकार का कर्म करता है !तथा उसकी सोच कैसी है ! हमारे भारत देश में हर किसी को अपने विचारो की अभिव्यक्ति की पूर्णतया स्वंत्रता है !
एव मेरा जंहा तक मानना है तो हम जिस समाज में जीवन व्यतीत कर रहे है यंहा पर 90 % व्यक्ति का कोई भी उद्देश्य बिना लालच के नहीं होता है चाहे हम इसे स्वीकार भले ही नहीं करे लेकिन सच्चाई तो अस्वीकार नहीं किया जा सकता !
लालच का अर्थ यह नहीं की हम बुरे कर्मो में इसका प्रयोग करे और यह सोच ले की हम तो प्रकृति का विकाश कर रहे है अपितु यदि हम थोडा सा अपनी सोच बदले तो यही लालच हमारा कर्तब्य बन जायेगा !
जैसे -- यदि कंही पर कोई गलत काम हो रहा है तो हम यह सोचते है की हमें इससे क्या लेना लेकिन यदि हम अपनी सोच को बदलकर ये सोचे की क्या पता ये हमारे साथ भी हो सकता है तब हमें हमारा स्वार्थ का लालच ये गलत काम रोकने पर मजबूर कर देगा !
मेरा उद्देश्य किसी भी व्यक्ति विशेष की भावना को ठोश पहुचाना उद्देश्य नहीं है ! यदि किसी की भी भावना आहत होती है तो मै उसके लिए क्षमा प्रार्थी हु ......
लालच और प्रतिस्पर्धा के बीच के .... अति सूक्ष्म अंतर का बहुत गहन विश्लेषण किया है आपने अपने लेख में ...
जवाब देंहटाएंप्रतिस्पर्धा एक स्वस्थ मनोवृत्ति है ....इसमें प्रतिस्पर्धी को बिना कोई नुकसान पहुंचाए अपने बुद्धिकौशल और मेहनत से उससे आगे निकलना होता है जबकि ..लालच में बिना कोई श्रम किये , बिना किसी का नफा-नुकसान सोचे , किसी भी तरह से किसी वस्तु को पा लेने की भयंकर इच्छा होती है |
आप सभी वरिष्ठ व्यक्तियो के द्वारा टिप्पणी पाकर मन मे नया करने की जिज्ञासा उत्पन होती है अत : आप सभी इसी प्रकार अपने विचारो से मुझे कृतज्ञ करे धन्यवाद आपको !
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