विचारो की अभिव्यक्ति के लिए आप सभी को धन्यवाद आप सभी के विचार ही मुझे प्रोत्साहित करते है!....

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

ये कैसी शर्म


आज के इस युग में इस २१ वि शताब्दी  में  जंहा पर मर्द व् औरतो के मध्य में कोई अंतर नहीं रहा है ! हम इसी बात को लेकर हमेसा लड़ते रहते है की औरतो को भी सामान हक़ मिलना चाहिए एव मै भी इस बात का समर्थन पूर्णतया करता हू ! की औरत व् मर्द में कोई अंतर नहीं है व् जो काम मर्द कर सकता है वो एक औरत भी अच्छी प्रकार से कर सकती है ! अब तो हमारे संविधान में भी इसको स्थान दिया गया है व् औरतो के लिये  आरक्षण है !
औरत को ममता  ,शर्म ,हया की मूर्ति माना जाता है ! औरत के जितना क्षमाशील ,सहनशील ,दयालु प्रवृति का कोई भी प्राणी शायद इस जगत में नहीं है !औरत के बिना मर्द का कोई अस्तित्व ही संभव  नहीं है क्योंकि पुरुष को जन्म देने वाली जननी वह औरत ही होती है जो की नव माह तक दर्द को सहन करके बच्चे को जन्म देती है ये सब बाते को मै तहे दिल से स्वीकार करता हु ! 
        लेकिन जंहा तक शर्म की बात है तो शर्म हर इंसान में होना चाहिए  ये बात सही है लेकिन उसकी भी एक सीमा है हम शर्म का आवरण ऐसा भी ना ओढ़ ले की स्वयं का पतन व् अपनी सोच को ही ख़तम कर दे ! तथा खुद का तो विनाश कर ही रहे है साथ में अपने सामने वाले व्यक्ति का भी जिससे हम  सामना कर रहे है !
जब कोई लड़की किसी रास्ते से गुजर रही होती है और अचानक उसी  मार्ग से कोई लड़का गुजर रहा हो तो वह शर्म से अपना सर झुका लेती है अब बताये ये आखिर में कैसी शर्म ! अब लड़के ने तो लड़की को ना ही कोई एक भी अपशब्द कहा ना ही कोई गलत व्यवहार किया तो फिर ये सर झुकाना कुछ ज्यादा ही शर्म नहीं है एक तो वैसे भी लड़के बदनाम ही है और फिर अगर स्त्री के साथ कुछ होता है तो पूरी मर्द जाती बदनाम होती है ये कैसा समाज है और इन् सब का मुख्य कारण हमारी समाज की मानसिक अवधारणा व् नजरिया है जो की समाज ने बना रखी है! हम हमेसा यही कहते है की "ताली  कभी एक हाथ से नहीं बजती "लेकिन ये जो शर्म है इसने तो सबको बदनाम कर दिया है ! यंहा ताली तो एक हाथ से ही बज रही है और लोग दुसरे ताली बजाने वाले हाथ को धुंडने लगते है 
             हम जो भी पिक्चर फ़िल्म देखते  है वह समाज पर ही आधारित होती है तथा वो एक तरह से समाज में होने वाले गतिबिधियो से हमारा सामना करते है ! मुझे इसी  बात पर एक पिक्चर फ़िल्म :ऐतराज" की याद आती है जिसमे खलनायिका की भूमिका अदा कर रही प्रियका चोपड़ा नायक अक्षय कुमार पर स्वयं का बलात्कार का आरोप लगाती है जो की गलत होता है लेकिन सभी लोग तो यही मान लेते है है की कोई औरत स्वयं अपना इज्ज़त गँवा  नहीं सकती जो की बाद में सच के सामने आने पर ये जाहिर हो जाता की नायक बेकसूर होता है  ! 
अत:ये जो अधिकाधिक शर्म है वह कंहा तक उचित है जो किसी को बिना गुनाह के ही सजा दिला दे !!  
--
Mani Bhushan Singh

2 टिप्‍पणियां:

  1. गुरु ब्रह्मा गुरुर विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर: !
    गुरु: साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवेनम: !!
    ....
    ध्यान मुलं गुरुर पदम, पूजा मुलं गुरुर मूर्ति !
    मन्त्र मुलं गुरुर वाक्यं, मोक्ष मुलं गुरुर कृपा !!

    गुरु पूर्णिमा के पवन पर्व पर हार्दिक मंगलकामनाये !!

    जवाब देंहटाएं