विचारो की अभिव्यक्ति के लिए आप सभी को धन्यवाद आप सभी के विचार ही मुझे प्रोत्साहित करते है!....

रविवार, 5 अप्रैल 2020

एक नई सोच की जरूरत

आज के इस समय में जहां पर कोरोना एक महामारी के रूप में फैला हुआ है एवं संपूर्ण विश्व में इसके रोकथाम के लिए उपाय किए जा रहे हैं जहां पर कई देशों में लॉक डाउन  कर्फ्यू जैसे हालात  है अपितु हमारे देश भारत के अंदर भी संपूर्ण लॉक डाउन है जिसे कि लोगों की जिंदगियों को बचाया जा सके एवं कोरोना नामक बीमारी को रोकथाम किया जा सके जिससे कि भविष्य में विकट स्थिति उत्पन्न ना हो !
लेकिन कहते हैं ना कुछ बुरा होता है तो कुछ अच्छा भी होता है शायद कुछ ऐसा ही है जो हमारे साथ में अभी घटित हो रहा है जिसे हम देख कर भी अनदेखा कर रहे हैं !संपूर्ण विश्व जहां पर पर्यावरण को लेकर चिंतित है !वायु प्रदूषण ,जल प्रदूषण ,ध्वनि प्रदूषण इत्यादि अनेक समस्याओं से संपूर्ण विश्व जूझ रहा है !हमारे देश के अंदर भी यह एक बहुत ही जटिल समस्या है लेकिन अभी के समय में कोरोना बीमारी के सामने कोई भी समस्या छोटी है !
जब हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने 21 दिन का संपूर्ण लॉक डाउन देश में घोषित किया तब सभी के मन में यही विचार आया कि हमें कोरोना के रोकथाम के लिए यह उपाय किया गया है एवं हम स्वयं को कोरोनावायरस नामक बीमारी से सुरक्षित पर लेंगे आज जैसा कि हम देख पा रहे हैं कि हम कोरोना को तो रोकथाम कर रहे हैं लेकिन इस बीमारी केेेेेे नुकसान के साथ ही कुछ फायदेे भी हुए !
मेरे मित्रों मेरा यह ब्लॉग लिखने का मेन उद्देश्य यही है कि मैं चाहता हूं कि जो एक नई सोच की जरूरत मैंने महसूस की है वह  आप सभी के साथ में साझा करना चाहता हूं जैसा कि मैं देख पा रहा हूं 
1.दिल्ली का प्रदूषण लेबल हमेशा हाई हुआ करता था जिसके कारण से दिल्ली के मुख्यमंत्री को ऑर्ड एंड इवन  सुविधा गाड़ियों में लागू करनी पड़ी थी जिससे कि प्रदूषण का स्तर कम हो सके वहीं दिल्ली के अंदर आज प्रदूषण का स्तर एकदम सामान्य हो गया है एवं वहां का आसमान एकदम साफ सुथरा है इसका मुख्य कारण यह है कि जब लॉकडाउन में गाड़ियों पर प्रतिबंध लगाया गया तो लोग अपने घरों में रहने को विवश हो गए जिसके कारण गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से एवं फैक्ट्रियों के निकलने वाला धुआं सभी को प्रतिबंध हुआ जिससे का वायु का स्तर काफी अच्छा हो गया जिससे कि दिल्ली का का प्रदूषण स्तर भी काफी पहले से बेहतर हो चुका है 
2 वाराणसी में गंगा नदी का पानी जो कि काफी ज्यादा प्रदूषित है एवं उसको साफ एवं सुरक्षित करने के काफी प्रयास केंद्र एवं राज्य सरकारों के द्वारा भी किए जा रहे हैं लेकिन उन प्रयासों के बावजूद भी हम उसको स्वच्छ करने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं उसका प्रदूषण स्तर भी काफी कम हो चुका है ! 
3. दिल्ली के अंदर भी यमुना नदी का पानी फैक्ट्रियों से निकलने वाले केमिकल युक्त पानी के मिश्रित होने के कारण उसका पानी काला हो गया था आजकल मैं ही प्रकाशित समाचारों में पाया गया कि दिल्ल्ली में प्रवाहित यमुना नदी का पानी भी काफी सुरक्षित हो चुका है !
3. आज जब हम शहर में चकाचौंध वाली जिंदगी जी रहे हैं जिसमें प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण आसमान में तारे भी साफ दिखाई नहीं देते थे वह भी अब साफ दिखाई देने लगे हैं!
4. कुछ दिनों पहले एक प्रकाशित समाचार में पाया गया कि केरल में समुद्र तट के पास कछुओ ने आठ से नौ लाख अंडे दिए हैं
5. वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण ओजोन परत में जो ब्लैक होल हुआ वह भी अब धीमे-धीमे भरने लगा है
     ऐसे अनेकों ही उदाहरण है जो कि इस  कोरोना के काल में पाए गए भगवान ना करे कि कोरोना जैसी परिस्थिति कभी उत्पन्न हो लेकिन इन परिस्थितियों के साथ में जो फायदे हुए हैं हमें उस और अपना ध्यान आकर्षित करने की जरूरत है 
अतः मेरी सोच यह है इस जहां पर आज हम 21 दिन का लॉक डाउन कर रहे हैं भविष्य में अगर हम साल में सिर्फ 2 दिन का जनता कर्फ्यू का पालन करें तो प्रदूषण के स्तर को काफी कम किया जा सकता है जो कि हमारे लिए ही फायदेमंद होगा यह मेरा  एक विचार है अतः आप सभी  महानुभाव से विनम्र निवेदन है आपको मेरे यह विचार रियल लगे यह नारियल टिप्पणी के माध्यम से मेरा मार्ग प्रशस्त करें !
धन्यवाद !
Mani Bhushan Singh

रविवार, 9 अप्रैल 2017

बेटे भी घर छोड़ के जाते हैं..

बेटे भी घर छोड़ के जाते हैं..

अपनी जान से ज़्यादा..प्यारा लेपटॉप छोड़ कर...

अलमारी के ऊपर रखा...धूल खाता गिटार छोड़ कर...

जिम के सारे लोहे-बट्टे...और बाकी सारी मशीने...

मेज़ पर बेतरतीब पड़ी...वर्कशीट, किताबें, कॉपीयाँ...

सारे यूँ ही छोड़ जाते है...बेटे भी घर छोड़ जाते हैं.!!

अपनी मन पसन्द ब्रान्डेड...जीन्स और टीशर्ट लटका...

अलमारी में कपड़े जूते...और गंध खाते पुराने मोजे...

हाथ नहीं लगाने देते थे... वो सबकुछ छोड़ जाते हैं...

बेटे भी घर छोड़ जाते हैं.!!

जो तकिये के बिना कहीं...भी सोने से कतराते थे...

आकर कोई देखे तो वो...कहीं भी अब सो जाते हैं...

खाने में सो नखरे वाले..अब कुछ भी खा लेते हैं...

अपने रूम में किसी को...भी नहीं आने देने वाले...

अब एक बिस्तर पर सबके...साथ एडजस्ट हो जाते हैं...

बेटे भी घर छोड़ जाते हैं.!!

घर को मिस करते हैं लेकिन...कहते हैं 'बिल्कुल ठीक हूँ'...

सौ-सौ ख्वाहिश रखने वाले...

अब कहते हैं 'कुछ नहीं चाहिए'...

पैसे कमाने की होड़ में...

वो भी कागज बन जाते हैं...

सिर्फ बेटियां ही नहीं साहब...

. . . . बेटे भी घर छोड़ जाते हैं..!(संकलित)

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

एक बार चिंतन तो कर ले !

आशा व् निराशा दोनों ही एक दुसरे के पूरक शब्द है ! लेकिन इन् दोनों शब्दों का व्याकरण में जितना उपयोग नहीं है उससे ज्यादा हमारे जीवन में इनका अधिक उपयोग है क्योंकि हमारे सम्पूर्ण जीवन की बागडोर इन्ही शब्दों  के आसपास घुमती रहती है !अत : ये एक शब्द न होकर हमारी जिंदगी  का एक अहम् हिस्सा  है  ! जब हम कोई काम तहे दिल से करते है तो हम आगे से ये उमीद भी करते  है की हमें संतोष जनक  जबाब प्राप्त हो लेकिन जब पूरी तरह से काम पूर्ण करने के बावजूद भी उसका सही उत्तर  नहीं मिलता है! तो हम बौखला जाते है तथा निराशा का दामन पकड़ लेते है एव हमारी यही इक्षा  होती है की जब संतोषप्रद जबाब ही नहीं मिल रहा तो ये काम करने  का कोई फायदा ही नहीं ! कई बार हमें क्रोध  भी आता है और कुछ समझ भी नहीं पाते है की आखिर में हमें क्या करना चाहिए ! लेकिन हम कभी ये नहीं सोचते की आखिर  क्या कारण है की हम जिस जबाब की प्रतीक्षा कर रहे थे वो हमें नहीं मिल पा रहा है कंही हमारे द्वारा किय गए कार्य में ही कोई कमी तो नहीं  है ! एव यह स्थिति हर इंसान के जिंदगी में आती  है ! शायद मेरे भी जिंदगी में भी और इसी कारण से शायद मै यह लिख पा रहा हु ! लेकिन जब हम ठन्डे दिमाग से सोचते है तो हमारे सामने दो कारण आते है जिनके बिना हमें संतोषजनक जबाब नहीं मिल पा रहा था ! एक तो यह की हो सकता है शायद हमारे काम में ही कोई कमी रहा गयी हो ! दूसरा कारण यह है की हमारी अपेक्षाए हमारे द्वारा किये गए कर्म से बड़ी हो जाती है ! अत : एक बार तो हमें यह विचार कर ही लेना चाहिए की कंही हम में ही तो कोई कमी नहीं क्योंकि आशा को निराशा बनने में देर नहीं लगती ! अत : हतो उत्साहित न होकर एक बार तो चिंतन जरूर कर ले !! 


Mani Bhushan Singh

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

खुद को पह्चाने


लेखिका कमलादास के पास एक किशोरी आई , जो जीवन  से निराश थी ! उसे लगता था की उसकी छबी एक अच्छी  लड्की की नही है ! कमला ने उससे कहा - तुम जिन पाँच बातो  से सर्वाधिक  नफरत करती  हो वो मुझे बताओ ! लड्की ने कहा - मुझे अपनी आन्टी  से  सर्वाधिक नफरत है , वह मुझे पसंद नही करती! लेखिका ने कहा "तुम वो पांच बाते बताओ जिनसे तुम्हे खुशी मिलती है ! लड्की ने कहा मुझे सिन्दुरी आम सबसे प्यारा है " कमला ने फिर कहा -आत्महत्या करने से पहले सिर्फ मेरी एक बात मान लो ! कल सुबह सिन्दुरी आम लेकर आन्टी के घर जाओ ! लड्की ने चिलाते हुए कहा - मै उनसे नफरत करती हु क्यु जाउँ वन्हा  ! लेकिन लेखिका ने उसे किसी तरह उसे राजी कर लिया ! एक हफ्ते बाद वो लड्की उसे साईकिल चल्ती हुई नजर आई , तो उन्होने  चौंकते  हुए सवाल किया ! इस पर लड्की ने जबाब दिया की आपकी तरकीब काम कर गई ! आन्टी से मिल्ने के बाद ही पता चला की वह कितनी अच्छी है ! अर्थात 
हम किस्सी भी व्यक्ति के बारे मे दुर से ही आकलन नही कर सकते की उस व्यक्ति का स्वभाव  कैसा है ! तथा वह हमारे साथ्  मे कैसा  व्यवहार करेगा !जब की किसी को बेहतर तरिके से जानने के लिए उसे करिब से जानना सबसे जरुरी होता है !  
Mani Bhushan Singh

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

ये कैसी शर्म


आज के इस युग में इस २१ वि शताब्दी  में  जंहा पर मर्द व् औरतो के मध्य में कोई अंतर नहीं रहा है ! हम इसी बात को लेकर हमेसा लड़ते रहते है की औरतो को भी सामान हक़ मिलना चाहिए एव मै भी इस बात का समर्थन पूर्णतया करता हू ! की औरत व् मर्द में कोई अंतर नहीं है व् जो काम मर्द कर सकता है वो एक औरत भी अच्छी प्रकार से कर सकती है ! अब तो हमारे संविधान में भी इसको स्थान दिया गया है व् औरतो के लिये  आरक्षण है !
औरत को ममता  ,शर्म ,हया की मूर्ति माना जाता है ! औरत के जितना क्षमाशील ,सहनशील ,दयालु प्रवृति का कोई भी प्राणी शायद इस जगत में नहीं है !औरत के बिना मर्द का कोई अस्तित्व ही संभव  नहीं है क्योंकि पुरुष को जन्म देने वाली जननी वह औरत ही होती है जो की नव माह तक दर्द को सहन करके बच्चे को जन्म देती है ये सब बाते को मै तहे दिल से स्वीकार करता हु ! 
        लेकिन जंहा तक शर्म की बात है तो शर्म हर इंसान में होना चाहिए  ये बात सही है लेकिन उसकी भी एक सीमा है हम शर्म का आवरण ऐसा भी ना ओढ़ ले की स्वयं का पतन व् अपनी सोच को ही ख़तम कर दे ! तथा खुद का तो विनाश कर ही रहे है साथ में अपने सामने वाले व्यक्ति का भी जिससे हम  सामना कर रहे है !
जब कोई लड़की किसी रास्ते से गुजर रही होती है और अचानक उसी  मार्ग से कोई लड़का गुजर रहा हो तो वह शर्म से अपना सर झुका लेती है अब बताये ये आखिर में कैसी शर्म ! अब लड़के ने तो लड़की को ना ही कोई एक भी अपशब्द कहा ना ही कोई गलत व्यवहार किया तो फिर ये सर झुकाना कुछ ज्यादा ही शर्म नहीं है एक तो वैसे भी लड़के बदनाम ही है और फिर अगर स्त्री के साथ कुछ होता है तो पूरी मर्द जाती बदनाम होती है ये कैसा समाज है और इन् सब का मुख्य कारण हमारी समाज की मानसिक अवधारणा व् नजरिया है जो की समाज ने बना रखी है! हम हमेसा यही कहते है की "ताली  कभी एक हाथ से नहीं बजती "लेकिन ये जो शर्म है इसने तो सबको बदनाम कर दिया है ! यंहा ताली तो एक हाथ से ही बज रही है और लोग दुसरे ताली बजाने वाले हाथ को धुंडने लगते है 
             हम जो भी पिक्चर फ़िल्म देखते  है वह समाज पर ही आधारित होती है तथा वो एक तरह से समाज में होने वाले गतिबिधियो से हमारा सामना करते है ! मुझे इसी  बात पर एक पिक्चर फ़िल्म :ऐतराज" की याद आती है जिसमे खलनायिका की भूमिका अदा कर रही प्रियका चोपड़ा नायक अक्षय कुमार पर स्वयं का बलात्कार का आरोप लगाती है जो की गलत होता है लेकिन सभी लोग तो यही मान लेते है है की कोई औरत स्वयं अपना इज्ज़त गँवा  नहीं सकती जो की बाद में सच के सामने आने पर ये जाहिर हो जाता की नायक बेकसूर होता है  ! 
अत:ये जो अधिकाधिक शर्म है वह कंहा तक उचित है जो किसी को बिना गुनाह के ही सजा दिला दे !!  
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Mani Bhushan Singh